मेरा
सोचना ऐसा लगता है, आप लोगों के सोच से
ज़रूर मेल खायेगा...
सवाल है? आज का दौर और इस
दौर में पत्रकारिता का बदलता चेहरा... जो सब कुछ जनता है... समझता है... पर
इस सब के बावजूद सच्चाई न बता कर ऐसी चीज़े परोस्ता है, जिसका सरोकार न तो समाज को
और न आने वाली नई पीढ़ी को भविष्य और भूतकाल के बारे सच्चाई से अवगत करना है.
जिसका जो मन करता है अपना
नजरिया दर्शाता है, जिससे सिर्फ और सिर्फ अपना फायदा हो सके. आज के इस बदगुमान दौर
में कम से कम किसी एक ऐसे पत्रकार या समाचार देने वाले की ज़रुरत है जो कम से कम आज
कल की नयी और आने वाली पीढ़ी को सच बता सके और उनका मार्गदर्शन कर सके, जिससे इनका
भटकाव ख़त्म न सही - कम तो हो.
मेरा मनना है कि जिस भी देश
ने अपने इतिहास को तथा भूतकाल को भुला दिया वो आने वाले समय में बहुत जल्द अपना
अस्तित्व खो देता है और स्वार्थी लोग जिसमें नेता, पूंजीपति आदि आते है, अपने
स्वार्थ के चलते देश, समाज, परिवार आदि सब की बलि चढ़ा देते हैं.
इन सब बातों को बहुत ही
गंभीरता से सोचने और समझने के बाद मैंने ये प्रण लिया है कि नहीं ऐसा नहीं होना
चाहिए - सच को सच ही रहना चाहिए - चाहे वो किसी भी दौर का क्यों न हो.
पता है यह राह आसान नहीं -
फिर भी चलना तो पड़ेगा ही, अगर धरोहर बचानी है - देश बचाना है, क्योंकि:
"खुद फरामोश जो पाया है हमें दुनिया ने,
हमारे ही हांथों ही लूटा है हमें दुनिया ने...
दिल तो बेदाम बिका,
ज़ेहन की कीमत न लगी,
ऐसे बाज़ार में बेचा है हमें दुनिया ने..."
हम और आप वक़्त रहते संभल गए
तो सब कुछ है - नहीं तो कुछ नहीं बचेगा..
इन्हीं सब बातों को नज़र में
रख कर - आ रहा हूँ लेकर – “ज़फ़र की ख़बर” - जो सिर्फ और सिर्फ सच्चाई ही दर्शाएगा...
(c) ज़फ़र की ख़बर
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