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संस्कृतियों का संगम, भारत और धर्म आधारित राजनिती...

भारत जैसा देश, जो अनेक प्रकार की संस्कृति का संगम है, में धर्म के आधार पर राजनिती करने के कारण बीजेपी नुकसान ही उठा रही है, यह भूल कर कि सत्ता जो हासिल हुई थी वह 'विकास' के नाम पर बदलाव की राजनीति के आधार पर हुई थी न की 'धर्म' के नाम पर. यह अब जग ज़ाहिर भी हो गया है, जिसका परिणाम गुजरात के चुनाव में भी दिखा है, जहाँ इनके द्वारा "कांग्रेस मुक्त भारत" के नारे को भी नाकारा गया है. गुजरात मॉडल का सच भी, अब बाहर आ रहा है, जनता इनको समझ रही है और अपना नजरिया दिखा रही है.
सब से प्रमुख बात तो यह है कि बीजेपी, आज कल अंतर्कलह के दौर से गुज़र रही है. अंदर ही अंदर गुटबाजी भी हो गई है. एक धड़ा है जो सत्ता में अग्रिम दिखने वाले चेहरों को एक सिरे से नकार चूका है क्योंकि उसे भी नज़रअंदाज़ किया गया है अब तक. यहाँ यह बात भी गौर करने वाली है कि ये वह लोग है जिन्होने नमो को सत्ता में यहाँ तक पहुचाया. सब इस बात को ज़रूर मानते होंगे कि जो किसी को उरूज दे सकता है तो वह समय आने पर वहीं पंहुचा भी सकता है, जहाँ से लाया था.
आम जनता ने नमो को १२ साल देने की बात सोंची थी, पर अब नहीं लगता कि जनता उनको इसके लायक भी समझती है. बाकी का बचा खुचा २०१७ के चुनाव में सामने आ जाएगा. अगर यही हाल रहा हो मेरा अनुमान यह कहता है कि अगले लोक सभा चुनाव में बीजेपी सरकार में आएगी तो पर प्रधानमंत्री, नमो न हो कर इस पार्टी में दुबारा जान फूंकने वाले "राजनाथ" होंगे, इसका एक बड़ा कारण यह है कि बीजेपी की डूबती हुए नैय्या को पार भी इन्होने ही लगाया था. यह भी जनता बाखूबी जानती है कि नमो भी उन्ही का खेला हुआ एक कार्ड है, जो अब रास्ते से भटक कर कही और जा रहे हैं.
समाज का एक हिस्सा औद्योगिक वर्ग जो बीजेपी को पसंद करता था और उसने ही सदा इसको सत्ता में देखना चाहा है और ऐसा किया भी है, अब इनसे नाखुश है. क्या आपको और हमको यह नहीं लगता कि इसका असर भी आगे सामने आएगा, ज़रूर आएगा, इसमें कोई दो राय हो ही नहीँ सकती, इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी, अब एक बदलाव की ज़रूरत महसूस कर रही है, जो समय की मांग भी है और ज़रूरत भी.

आगे आगे देखो क्या होता है - समय बड़ा बलवान है जी... 
                               (c) ज़फ़र की ख़बर

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