ओवैसी ने कहा था कि वह ‘भारत माता की जय’ नहीं बोलेंगे। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान के विरोध में ओवैसी ने यह बात कही थी। भागवत के कथानुसार नई पीढ़ी को भारत माता की जय बोलना सीखाना होगा जिस पर असदुद्दीन ओवैसी ने सभा में मौजूद लोगों से कहा था कि मैं भारत में रहूंगा पर भारत माता की जय नहीं बोलूंगा। क्योंकि यह हमारे संविधान में कहीं नहीं लिखा है न यह बोलना जरूरी है।
अब आप यह पढे जो एक सबसे बड़े इस्लामिक विद्वान ने कहा है कि, देश को मां का दर्जा देना इस्लाम में लिखा है। यहाँ एक दिलचस्प पहलू ये है कि इस्लाम के जिस संप्रदाय से असदुद्दीन ओवैसी का संबंध है, "ताहिर उल कादरी" उसी संप्रदाय में दुनिया के बड़े विद्वानों कहे जाते हैं:
अब आप यह पढे जो एक सबसे बड़े इस्लामिक विद्वान ने कहा है कि, देश को मां का दर्जा देना इस्लाम में लिखा है। यहाँ एक दिलचस्प पहलू ये है कि इस्लाम के जिस संप्रदाय से असदुद्दीन ओवैसी का संबंध है, "ताहिर उल कादरी" उसी संप्रदाय में दुनिया के बड़े विद्वानों कहे जाते हैं:
बीते दिनों AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने यहां तक कहा था कि अगर उनकी गर्दन पर छुरी भी रख दे कोई तो भी वह ये नहीं बोलेंगे। जिसके बाद से पूरे देश में बवाल शुरू हो गया। कई नेताओं ने उनके इस बयान का विरोध किया। एक बीजेपी नेता ने तो यहां तक बोल दिया था कि ओवैसी की जुबान काटने वाले को वह एक करोड़ का इनाम देंगे। इसी बीच पाकिस्तान के मशहूर इस्लामिक स्कॉलर और राजनेता ताहिर उल कादरी ने कहा कि "वतन को मां का दर्जा देना इस्लाम की तालीम और उसके इतिहास का हिस्सा हैं"।
ये ताहिर उल कादरी वो हैं जिन्होंने आतंकवाद के खिलाफ विश्व स्तर पर मोर्चा खोला था। इन्होने कहा है कि वतन की सरजमीन को मां का दर्जा देना, वतन की सरजमीन से मोहब्बत करना, वतन की सरजमीन से प्यार करना, वतन की सरजमीन के लिए जान भी दे देना, ये हरगिज़ इस्लाम के खिलाफ नहीं है। ये इस्लामी तालीम में शामिल है। ताहिर उल कादरी ने यह भी कहा कि जो वतन से प्यार के खिलाफ बात करता है उसे चाहिए कि "कुरान" को पढ़े। इस्लामी इतिहास को पढ़े और पढ़ कर समझे न कि किसी के कहने से।
ताहिर उल कादरी आतंकवाद के खिलाफ 20 मार्च को होने वाली इंटरनेशनल सूफी कॉन्फ्रेंस में शरीक होन के लिए भारत आए हैं। दिलचस्प पहलू ये है कि इस्लाम के जिस संप्रदाय का असदुद्दीन ओवैसी का संबंध है, ताहिर उल कादरी उसी संप्रदाय में दुनिया के बड़े विद्वानों में से एक हैं। ज्ञात हो कि साल 2012 में ओवैसी और ताहिर उल कादरी को मंच साझा करते हुए भी देखा गया था।
अब मैं, जो कह रहा हूं, यह भी सुन लें आप लोग कि कुरान मजीद को सिर्फ और सिर्फ हिफ्ज़ करने से कुछ नहीं होगा, इसका अर्थ जानना ज़जूरी है - अगर कुरान हिफ्ज़ करने से ही सब कुछ हो जाता तो अल्लाह द्वारा "पैगम्बर (स० वा०) साहब" को इस्लाम के बारे में हमे बताने और इसको समझाने हेतु हमारे बीच भेजने कि क्या ज़रुरत थी - इसके लिए तो "जिब्राइल" ही काफ़ी थे, जो सुना देते हम सब को कुरान मजीद की आएत...
पता है यह कड़वा सच है पर यही हकीक़त है. यह भी सच है कि अभी हमे "इस्लाम" को पूरी तरह से समझना बाकी है क्युकि इस्लाम हमे उतना ही बताया गया जिससे "बताने वाले" का अपना फ़ायदा क़ायम रहा है...
यहाँ ये कहना गलत नहीं होगा कि ओवैसी और इन जैसे और भी लोग उपरोक्त बातें कह कर राजनीती में सिर्फ और सिर्फ अपना फ़ायदा देखते है और हम सब को सही रास्ते से भटकते रहते है...
भारत माता की जय - जय हिन्द.
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(c) ज़फर की खबर
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