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Showing posts from October, 2015

पंद्रह लाख लोगों की टी०बी० से हुई मौत, पिछले वर्ष

देश में टी०बी० के मरीज़ की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी आ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्लू० एच्० ओ०) के अनुसार   भारत में पिछले साल तदेपिक यानी टी०बी० के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। डब्लू० एच्० ओ० की एक रिपोर्ट यह बताती है कि सन् 2014 में देश में इस बीमारी से 15,00,000 लोगों की मौत हुई है। जिनमें 1 ، 40,000 बच्चे शामिल थे।  विश्व स्वास्थ्य संगठन की जारी हुई “ वैश्विक तदेपिक रिपोर्ट 2015 ” के मुताबिक , 2014 में टी०बी० के 96 लाख नए मामले दर्ज किए गए , जिनमें से 58 फीसदी मामले दक्षिण-पूर्वी एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र से थे। वैश्विक स्तर पर 2014 में कुल सामने आए मामलों में , भारत , इंडोनेशिया और चीन में टी०बी० के सबसे ज्यादा मामले सामने आए जो कि क्रमश: 23 प्रतिशत , 10 प्रतिशत और 10 प्रतिशत हैं। पिछले साल नाइजीरिया , पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका में भी टी०बी० के मामलों की संख्या ज्यादा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें अधिकतर मौतों को रोका जा सकता था।  दुनिया में जानलेवा बीमारियों में एच्० आई० वी० के साथ इस रोग का भी नंबर आता है। भारत और नाइजीरिया में

राष्ट्रीय अवार्ड और लोगों की बातें

इस देश में अवार्ड (National Awards) चाहे किसी को भी, कभी भी मिला हो, उसके पीछे राजनैतिक जुड़ाव और चापलूसी का बोलबाला सदा ही रहा है,  वरना यहाँ न जाने कितने ऐसे लोग पड़े है जिनकी सारी उम्र निकल गई और एक धेला तक हाथ न लगा, अवार्ड तो दूर की बात है. पता है आप सभी, मेरी इस बात से सहमत होंगे, फिर भी पता नहीं क्यों, इन सब बातों को जानने के बावजूद, हम सब तरह-तरह की बातें करके अपना समय खराब करते है - सच्चाई जो है वह चाह कर भी नहीं बदली जा सकती. जिसकी सरकार होती है, उसी का वर्चस्व होता है, सदा ही और एक जो सरकार में है, दूसरों को बुरा कहता है. सब जानते है, आम ज़िन्दगी की कभी भी दूर दूर तक राजनीती से करीबी नहीं रही, फिर भी क्यों समय खराब करते है हम सब. सच्चाई तो यह है कि बस वोट के समय ही हमारी पूछ होती है - फिर वो राजा और हम सदा की तरह भिखारी. समझो और संभलो भाइयों.                   (c) ज़फ़र की ख़बर  

चाय चाय से गाय गाय तक...

कथनी और करनी में अगर अंतर आ जाये तो समय कैसे बदलता है, यह हम सब बिहार चुनाव में साफ़ देख सकते है, जो चाय चाय करते आये थे अब गाय गाय करते हुए जाने की त्यारी में है. कोई तो उन्हे बताये कि अब हम समझदार हो गये हैं. संभल जाएँ. अब सब देखना, इस चुनाव प्रचार में जिसको बुरा कहा जा रहा हैं, ये सरकार उसी के साथ बनायेंगे.                                         (c) ज़फर की खबर  

बिहार में बिहारी या बाहरी...

बिहार चुनाव में "बिहारी या बाहरी" वाला नारा काम कर गया, जिसका असर बीजेपी के अगले सभी कार्येकर्मो पर साफ़ दिख रहा है. नमो की अगली ०६ रैलियां निरस्त कर दी गई है. बाहरी सब बाहर कर दिए गए हैं. आप को क्या लगता है - क्या समीकरण बनेगा.. मेरा मानना है की बिहार में भी जम्मू कश्मीर जैसी सरकार का पदार्पण होगा "नितीश और भाजपा" चौकिये मत - इंतज़ार कीजिए.                (c) ज़फ़र की ख़बर  

दादरी - घटना तो दुखद है पर....

दादरी पर नमो द्वारा दिया गया बयान कि "मैं इस घटना से आहत हूँ" और कोई कार्येवाही न करना, यह दर्शाता है कि चाह कर भी बीजेपी अपने नेताओं बचाना चाहती और इस घटना हेतु सीधे सीधे विपक्ष को दोषी ठहराया जाना न कि राज्य सरकार को, इस बात को और भी पुख्ता करता है कि बीजेपी जान कर ऐसी बातों को नज़रअंदाज़ कर रही है. जबकि ११ आरोपियों मे ०८ आरोपी तो बीजेपी के ही सदस्य है. उनमे से एक मुख्य आरोपी तो बीजेपी के नेता का ही बेटा है. बीजेपी कोई कदम उठाना नहीं चाहती और राज्य सरकार कुछ करेगी नहीं क्योंकि समाजवादी पार्टी और बीजेपी को अगला चुनाव २०१७ में साथ साथ जो लड़ना है. आप लोग खुद ही देखे और अंदाज़ा लगायें कि क्या ऊपर का घटनाकर्म मेरी कही बातों की ओर इशारा नहीं करता. जनता समझदार है समझ जाएगी - पर धीरे धीरे...                       (c) ज़फ़र की ख़बर  

उत्तर प्रदेश चुनाव २०१७

कुछ तारो ताज़ी हलचल, सुनगुन और हालात पर नज़र डालने के बाद आज मैं इस मुक़ाम पर पंहुचा हूँ की अगला चुनाव उत्तर प्रदेश के इतिहास में कुछ नया ही मोड़ लाने वाला है. सुन कर आप को भी यकीन नहीं आएगा पर क्या करूँ सच तो सच ही है और मुझे सच कहने की आदत जो है तो कहूँगा ही. आगामी २०१७ के चुनाव में प्रदेश के सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी "समाजवादी पार्टी" इस बार चुनाव "भारतीय जनता पार्टी" के साथ लड़ेगी. अभी यह सुन कर कुछ अटपटा सा लगेगा, पर यही सच्चाई है. इस पर अभी बहुत कुछ होना बाकी है... आगे आगे देखिये होता है क्या... सच कहता हूँ - सारे समीकरण बदल जायेंगे. और यह अपना काम कर जायेंगे. क्योंकि दोनों पार्टी का एक ही मुद्दा है सिर्फ और सिर्फ सरकार में बने रहना...                                                         (c) ज़फ़र की ख़बर 

चुप रहना ज़रूरत है - न कि मज़बूरी

नमो को अब समझ आ रहा है कि मनमोहन चुप क्यों रहते थे.... जागो भाइयों जागो.... मुझे तो बस उस वक़्त का इंतज़ार है कि यह बातें हम (जनता) को कब समझ आएगी... जब न तो इनके बोलने - न ही चुप रहने का हम पर कोइ असर होगा... काश! वोह दिन जल्दी आए...                                             (c) ज़फ़र की ख़बर

नमो का टूटता तिलिस्म

नमो आप क्यों चुप लगाये बैठे हो, मुझे अब आपका तिलिस्म टूटता नज़र आ रहा है... आपकी इस चुप्पी से आपके अपने ही बकर, बकर कर के आपकी बची खुची साख को भी मिट्टी में मिलने मे लगे है. सच कहू, बर्बाद कर दिया वो सब, जो भी आप को मिला था देशवासिओं से - प्रेम, सम्मान आदि आदि... क्योंकि अब बची खुची उम्मीद टूट गई सब की, जो थी आप से.  मह्गाई तो आसमान छु ही रही है और आप जनता से सब्सिडी छोड़ने की बात करते हो, अफ़सोस होता है यह सोंच कर कि यही बात आप अपने मंत्रियों से क्यों नहीं कहते एवं सभी सरकारी कैंटीन को पहले सब्सिडी मुक्त क्यों नहीं करते. देश का बजट, जो सेना को देने के बाद बचता है, उसका ज्यादा हिस्सा सरकारी तंत्र को चलाने मे ही खर्च हो जाता है, जबकि यह खर्च कम भी किया जा सकता है. रही देश चलाने की बात, कोई नहीं चला रहा देश को, वह तो ऑटो मोड मे है, यह खुद चल रहा है. आप तो बस पार्टी के कामों मे ही लगे हो, अगर धरातल पर काम किया होता तो पार्टी की तो यूँ ही बल्ले बल्ले होती. झूट का सहारा नहीं लेना पड़ता, जो अब लेना पड़ रहा है. जनता त्राहि त्राहि कर रही है, जनता को सुनने वाला कोई है ही नहीं. कहाँ अलग हो

बाबरी के बाद अब दादरी, कब समझेगे हम

हाँथी के दांत खाने के और, दिखाने के और - यह कहावत यहाँ चरितार्थ होती है: यह है कुछ चुनी हुई मीट निर्यात कंपनिया और उसके मालिकों के नाम, जो विदेशों में मीट निर्यात करते है: १. अतुल सभरवाल - अरेबियन एक्सपोर्ट के मालिक २. महेश जगदाले - अल नूर एक्सपोर्ट के मालिक ३. अजय सूद - अल कबीर एक्सपोर्ट्स के मालिक और तो और ४. आल इंडिया मीट एंड लाइवस्टॉक एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के महासचिव भी डीबी सभरवाल हैं. (उपरोक्त कंपनियों और उसके मालिकों के नाम की जानकारी मुझे एक दोस्त की फेसबुक पोस्ट से प्राप्त हुई) क्या आप मे से किसी ने यह सुना है की कभी मुसलमानों ने गोकशी पर पाबन्दी को हटाने की बात की है. मैं यहाँ यह कहना चाहता हूं की मौजूदा सरकार मीट निर्यात को बंद ही क्यों नहीं कर देती. न रहेगा बांस न बजेगी बासुरी.... अरे हाँ! अगर ऐसे हो गया तो फिर यह रोटियां कहा सिकेगी जो इनको राजनीतिक फ़ायदा देती है. क्योंकि इनको आम जनता की फिक्र है ही कहाँ? हम जनता को लड़ा कर सदा ही अपना उल्लू सीधा किया है इन्होने. हम बेवक़ूफ़ है और सदा ही रहेगे. मुझे पता है अब भी हम और आप नहीं समझ पायेंगे - सच्चाई. जबकि सबको सब प