हाँथी के दांत खाने के और, दिखाने के और - यह कहावत यहाँ चरितार्थ होती है:
यह है कुछ चुनी हुई मीट निर्यात कंपनिया और उसके मालिकों के नाम, जो विदेशों में मीट निर्यात करते है:
१. अतुल सभरवाल - अरेबियन एक्सपोर्ट के मालिक
२. महेश जगदाले - अल नूर एक्सपोर्ट के मालिक
३. अजय सूद - अल कबीर एक्सपोर्ट्स के मालिक
और तो और
४. आल इंडिया मीट एंड लाइवस्टॉक एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के महासचिव भी डीबी सभरवाल हैं.
(उपरोक्त कंपनियों और उसके मालिकों के नाम की जानकारी मुझे एक दोस्त की फेसबुक पोस्ट से प्राप्त हुई)
क्या आप मे से किसी ने यह सुना है की कभी मुसलमानों ने गोकशी पर पाबन्दी को हटाने की बात की है. मैं यहाँ यह कहना चाहता हूं की मौजूदा सरकार मीट निर्यात को बंद ही क्यों नहीं कर देती. न रहेगा बांस न बजेगी बासुरी....
अरे हाँ! अगर ऐसे हो गया तो फिर यह रोटियां कहा सिकेगी जो इनको राजनीतिक फ़ायदा देती है. क्योंकि इनको आम जनता की फिक्र है ही कहाँ? हम जनता को लड़ा कर सदा ही अपना उल्लू सीधा किया है इन्होने. हम बेवक़ूफ़ है और सदा ही रहेगे. मुझे पता है अब भी हम और आप नहीं समझ पायेंगे - सच्चाई. जबकि सबको सब पता है यही है लोकतंत्र हमारा - जिसमे हम पढे लिखे को सदा ही ठगा है, अनपढ़ लोगों ने. अब यह मत पूछना यहाँ मैने "अनपढ़" किसे कहा.
(c) Zafar Ki Khabar
यह है कुछ चुनी हुई मीट निर्यात कंपनिया और उसके मालिकों के नाम, जो विदेशों में मीट निर्यात करते है:
१. अतुल सभरवाल - अरेबियन एक्सपोर्ट के मालिक
२. महेश जगदाले - अल नूर एक्सपोर्ट के मालिक
३. अजय सूद - अल कबीर एक्सपोर्ट्स के मालिक
और तो और
४. आल इंडिया मीट एंड लाइवस्टॉक एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के महासचिव भी डीबी सभरवाल हैं.
(उपरोक्त कंपनियों और उसके मालिकों के नाम की जानकारी मुझे एक दोस्त की फेसबुक पोस्ट से प्राप्त हुई)
क्या आप मे से किसी ने यह सुना है की कभी मुसलमानों ने गोकशी पर पाबन्दी को हटाने की बात की है. मैं यहाँ यह कहना चाहता हूं की मौजूदा सरकार मीट निर्यात को बंद ही क्यों नहीं कर देती. न रहेगा बांस न बजेगी बासुरी....
अरे हाँ! अगर ऐसे हो गया तो फिर यह रोटियां कहा सिकेगी जो इनको राजनीतिक फ़ायदा देती है. क्योंकि इनको आम जनता की फिक्र है ही कहाँ? हम जनता को लड़ा कर सदा ही अपना उल्लू सीधा किया है इन्होने. हम बेवक़ूफ़ है और सदा ही रहेगे. मुझे पता है अब भी हम और आप नहीं समझ पायेंगे - सच्चाई. जबकि सबको सब पता है यही है लोकतंत्र हमारा - जिसमे हम पढे लिखे को सदा ही ठगा है, अनपढ़ लोगों ने. अब यह मत पूछना यहाँ मैने "अनपढ़" किसे कहा.
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